दीवार में थी एक खिड़की पर नज़र आती न थी / ज़िन्दगी बेहद हसीं थी पर इस कदर गाती न थी // जग चुका है जिस्म में इक रूह के एहसास सा / लग रहा हर एक...Read More
रहमान के सम्मान में ,
Reviewed by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
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2:28 pm
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इस तरह से जिया ,मै मरा / ज़िन्दगी में नही है त्वरा // तप रहा और ज्यादा गगन / निर्जला हो रही है धरा // रौशनी हारने लग पड़ी / लग रहा है अँधेरा...Read More
ग़ज़ल
Reviewed by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
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9:25 pm
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मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ,स्नेह और आत्मीयता के चलते सभी को अपने साथ समेट लेने की आकांक्षा ,पूरी हो ,ना हो पर है तो ,जीवन में सब कुछ चाह कर कहाँ मिल पाता है ?बहुत मिला हार्दिक धन्यवाद