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डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
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खुशबू के शिलालेख
तुम खुशबू के शिलालेख हो , मै हूं सागर की गहराई, तुम हो दिव्य कामना मन की मैं हूं तेरी ही परछाईं // तेरे दुःख के सारे किस्से , लगते है...
बिग मून के स्वागत में
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ग़ज़ल
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ग़ज़ल
जाने क्यों जीवन में शेष बस उदासी है ? मुस्कानें ग़ायब हैं ,जेब में उबासी है // रूठने मनाने के झूठे सब नाटक हैं / भूख बहुत ज्यादा है ,प्या...
ग़ज़ल
टूटता है मन,मनोबल टूटता है/ कोई अपना जब अचानक रूठता है // दर्द का सागर सुनामी पालता है / अभिव्यक्ति का ज्वालामुखी जब फूटता है // दूर तक...
आज एक ताज़ी कविता
- पहचान ले जो जिंदगी ,वो नजर कहाँ से लाऊं ? ये है आंसुओं की मंडी,यहाँ कैसे मुस्कराऊँ ? ये दबी -दबी सी आ...
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डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ,स्नेह और आत्मीयता के चलते सभी को अपने साथ समेट लेने की आकांक्षा ,पूरी हो ,ना हो पर है तो ,जीवन में सब कुछ चाह कर कहाँ मिल पाता है ?बहुत मिला हार्दिक धन्यवाद
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मन
'खो गया मन, सो गया मन दूसरों का हो गया मन धूल सा उड़ने लगा मन राग से जुड़ने लगा मन साँस जैसा चल रहा मन ख़ुद को ख़ुद ही छल रहा मन रोशनी स...
बिग मून के स्वागत में
ओह ,मेरे प्रिय,दुलारे चाँद, बहुत पहले और मुझसे बाद, आकाश मे अनगिनित वर्षों से , तुम रहे पुरनूर औ आज़ाद, ...
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