आज फिर नभ में खिला है एक पूरा चाँद , पर तुम्हारे बिन लगा मुझको अधूरा चाँद, बादलों के बीच करता है चहलकदमी , नापता है जिंदगी की ढेर सी दूरी , ...Read More
चाँद
Reviewed by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
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11:49 pm
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मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ,स्नेह और आत्मीयता के चलते सभी को अपने साथ समेट लेने की आकांक्षा ,पूरी हो ,ना हो पर है तो ,जीवन में सब कुछ चाह कर कहाँ मिल पाता है ?बहुत मिला हार्दिक धन्यवाद