कविता by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह9:26 pmतन जलता है ,मन जलता है , खुद में एक सूरज पलता है , अपनी बात न कह पाए हम , यही हमारी असफलता है , उम्मीदों के चन्दन वन में , नेह भरे उ...Read More
मैं by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह6:56 amइस तरह से जिया, मैं मरा/ जिंदगी में नहीं है त्वरा // तप रहा और ज्यादा गगन / निर्जला हो रही है धरा // रोशनी हारने लग पड़ी / लग रहा है अँधे...Read More
खुशबू के शिलालेख by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह1:12 pmतुम खुशबू के शिलालेख हो , मै हूं सागर की गहराई, तुम हो दिव्य कामना मन की मैं हूं तेरी ही परछाईं // तेरे दुःख के सारे किस्से , लगते है...Read More