लिखता हूँ मैं ,दिखता हूँ मैं , टुकड़ों -टुकड़ों बिकता हूँ मैं , फिर भी छोड़ कहाँ जाऊं सब ? इस माटी की सिकता हूँ मैं // ओढ़ भ्रमों का चोला-बा...Read More
लिखता हूँ मैं
Reviewed by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
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11:27 pm
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मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ,स्नेह और आत्मीयता के चलते सभी को अपने साथ समेट लेने की आकांक्षा ,पूरी हो ,ना हो पर है तो ,जीवन में सब कुछ चाह कर कहाँ मिल पाता है ?बहुत मिला हार्दिक धन्यवाद