मन
'खो गया मन, सो गया मन
दूसरों का हो गया मन
धूल सा उड़ने लगा मन
राग से जुड़ने लगा मन
साँस जैसा चल रहा मन
ख़ुद को ख़ुद ही छल रहा मन
रोशनी सा हो गया मन
रात जैसा सो गया मन
धूप सा खलने लगा मन
दीप सा जलने लगा मन
बीज नूतन हो गया मन
फ़िर से ज़िन्दा हो गया मन
दूसरों का हो गया मन
धूल सा उड़ने लगा मन
राग से जुड़ने लगा मन
साँस जैसा चल रहा मन
ख़ुद को ख़ुद ही छल रहा मन
रोशनी सा हो गया मन
रात जैसा सो गया मन
धूप सा खलने लगा मन
दीप सा जलने लगा मन
बीज नूतन हो गया मन
फ़िर से ज़िन्दा हो गया मन
नए चिट्ठे के साथ आपका स्वागत है.... हिन्दी चिट्ठाजगत में ....आशा है आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिट्ठा जगत को मजबूती देंगे.....हमारी शुभकामना आपके साथ है।
जवाब देंहटाएंमन को मन से पढ़ रहा मन।
जवाब देंहटाएंकल के सपने गढ़ रहा मन।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
सुस्वागतम बधाइयां
जवाब देंहटाएंखुल कर लिखें अच्छा लिखे
चिन्तन करें सिर्फ़ चिंता नहीं
सादर
भवदीय
गिरीश बिल्लोरे मुकुल
सही। मन की बात कहते रहें!
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत सुन्दर लिखा है। आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंदीप सा जलने लगा मन
जवाब देंहटाएंबीज नूतन हो गया मन
फ़िर से ज़िन्दा हो गया मन
स्वागत है आपका..!
अच्छी शुरुवात.
aapki kavita par aa gya mera man
जवाब देंहटाएंअंतर्मन की आवाज को शब्दों में निरंतर पिरोते रहें। ब्लागजगत में आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंमन की अच्छी कविता. खूबसूरत.
जवाब देंहटाएं---
बधाई भूपेन्द्रजी !आपकी रचना रंग ला रही है ! निरंतरता बनाये रखें !
जवाब देंहटाएंहिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.