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मन

'खो गया मन, सो गया मन
दूसरों का हो गया मन
धूल सा उड़ने लगा मन
राग से जुड़ने लगा मन
साँस जैसा चल रहा मन
ख़ुद को ख़ुद ही छल रहा मन
रोशनी सा हो गया मन
रात जैसा सो गया मन
धूप सा खलने लगा मन
दीप सा जलने लगा मन
बीज नूतन हो गया मन
फ़िर से ज़िन्दा हो गया मन

11 टिप्‍पणियां:

  1. नए चिट्ठे के साथ आपका स्वागत है.... हिन्दी चिट्ठाजगत में ....आशा है आप अपनी प्रतिभा से हिन्दी चिट्ठा जगत को मजबूती देंगे.....हमारी शुभकामना आपके साथ है।

    जवाब देंहटाएं
  2. मन को मन से पढ़ रहा मन।
    कल के सपने गढ़ रहा मन।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. सुस्वागतम बधाइयां
    खुल कर लिखें अच्छा लिखे
    चिन्तन करें सिर्फ़ चिंता नहीं
    सादर
    भवदीय
    गिरीश बिल्लोरे मुकुल

    जवाब देंहटाएं
  4. सही। मन की बात कहते रहें!

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह! बहुत सुन्दर लिखा है। आपका स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  6. दीप सा जलने लगा मन
    बीज नूतन हो गया मन
    फ़िर से ज़िन्दा हो गया मन


    स्वागत है आपका..!
    अच्छी शुरुवात.

    जवाब देंहटाएं
  7. अंतर्मन की आवाज को शब्‍दों में निरंतर पिरोते रहें। ब्‍लागजगत में आपका स्‍वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  8. मन की अच्छी कविता. खूबसूरत.
    ---

    जवाब देंहटाएं
  9. बधाई भूपेन्द्रजी !आपकी रचना रंग ला रही है ! निरंतरता बनाये रखें !

    जवाब देंहटाएं
  10. हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

    आपको एवं आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.