ग़ज़ल
ग़ज़ल
शब्द नहीं हैं,अर्थ नहीं हैं ,लय का है भारी टोटा /
सच मे कहिये,क्या करियेगा ,जब अपना सिक्का खोटा//
भूखे ,नंगे,मजलूमों ने तो अपना कर्त्तव्य किया /
हम मे चाल ,चरित्र नहीं है ,यही बताता है नोटा//
अपनी सुविधाओं से गढ़ कर लोकतंत्र के अर्थ नए /
घूम रहे हैं इधर उधर ,जैसे बिन पेंदी का लोटा //
बड़े-बड़े चेहरों के भीतर कितनी कालिख पुती हुई /
बडे यहाँ पर बडे नहीं हैं लेकिन छोटा है छोटा //
सम्राटों के लिए सदा बलि होते हैं भूखे नंगे /
संगीनों के पहरे मे अब ,राजसूय करते होता //
शब्द नहीं हैं,अर्थ नहीं हैं ,लय का है भारी टोटा /
सच मे कहिये,क्या करियेगा ,जब अपना सिक्का खोटा//
भूखे ,नंगे,मजलूमों ने तो अपना कर्त्तव्य किया /
हम मे चाल ,चरित्र नहीं है ,यही बताता है नोटा//
अपनी सुविधाओं से गढ़ कर लोकतंत्र के अर्थ नए /
घूम रहे हैं इधर उधर ,जैसे बिन पेंदी का लोटा //
बड़े-बड़े चेहरों के भीतर कितनी कालिख पुती हुई /
बडे यहाँ पर बडे नहीं हैं लेकिन छोटा है छोटा //
सम्राटों के लिए सदा बलि होते हैं भूखे नंगे /
संगीनों के पहरे मे अब ,राजसूय करते होता //
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