बिग मून के स्वागत में
ओह ,मेरे प्रिय,दुलारे चाँद,
बहुत पहले और मुझसे बाद,
आकाश मे अनगिनित वर्षों से ,
तुम रहे पुरनूर औ आज़ाद,
जगाते हरदम नया विश्वास,
साथ ही तुम द्वन्द,शंका,त्रास ,
है विपर्यय पर यही है सत्य,
नेह और संत्रास दोनों पास,
तुम रहे हो काल का इतिहास,
आगये हो आज बेहद पास
,तुम रहोगे पर न मैं हूँगा वहां,
जब धरा के निकट यूं आकाश
सृष्टि है यह मानवी संकल्प,
गो कि सम्मुख है प्रकृतिं विकल्प,
पर मनुज कीअलग ही सामर्थ्य ,
भले ही सत्ता रही हो अल्प ,
भले ही तुमनेमचाये ध्वंस ,
कल्पना मे ही रहे कुछ अंश,
तुमने जगाये भाव मानव में सदा,
हों समाहित कृष्ण या फिर कंस,
भूमि पतियों को दिए आशीष,
पर दलित वंचित भी नवाते शीश,
तुम गज़ब के लोक चिंतक मित्र,
आज का सौन्दर्य सबसे बीस,
बुद्धि के प्रेरक ,कवि के मीत ,
तरलता पर ठोसपन की जीत,
गद्य के सुललित,मधुरिम पृष्ठ ,
तूलिका के चित्र मय नवगीत,
तुम कपो लों पर उगे दो कूप,
काँति जैसे सर्दियों की धू प,
समय तुमसे है पराजित देव,
ललक देने की कि जैसे भूप ,
तुम प्रणय संकल्पना का छोर ,
तुम सुनामी के जलद का शोर,
तुम की जैसे प्रथम कवि का छंद ,
सृष्टि के पहले दिवस का भोर,
गगन का तुम धरा पर विश्वास,
मनुज की भावनाओं का नरम एहसास ,
तुम कि जैसे प्रीति केपहले प्रहर का पुष्प,
तुम ज्यों सृष्टि पर उतरा हुआ मधुमास,
सुनो,गंगा में उतरते चाँद,
हो बनारस या इलाहाबाद
,बाद दशकों जब मिलोगे दोस्त,
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