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आज एक ताज़ी कविता

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पहचान ले जो जिंदगी ,वो नजर कहाँ से  लाऊं ?                                   
ये है आंसुओं की मंडी,यहाँ कैसे मुस्कराऊँ ?
ये दबी -दबी सी आहें ,उफ़ ,ये नजर का कुहासा ,
जहाँ ग़म के सिलसिले हैं वहां कैसे गुनगुनाऊँ ,
यहाँ भूख का सफ़र है ,वहां रोशनी का जलवा ,
जहाँ इत्र उड़  रहा हो वहां प्यास क्या बुझाऊँ ,
हर एक खुश है यारों ,चलो बच गयी है इज्जत ,
इस रोशनी के आँसू तुम्हें मीत क्या दिखाऊँ ,
फुटपाथ पे जो बूढा अभी बिन रहा था टुकड़े ,
पहियों तले बिछा है,उसे बोलो कहाँ लिटाऊ,
मेरे देश चुप हो  कैसे ,कुछ बोलते नहीं क्यों?
सदियों रहा हूं भूखा ,कैसे वजन  उठाऊँ //

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर भावाव्यक्ति ,संवेदनशील रचना ......

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  2. वाह ...बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों का संगम है ...आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह!...आपकी लेखनी काफी पक्की है ज़नाब! बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर संवेदनशील रचना...
    सादर बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  5. वाह वाह वाह। आपको बधाई देने के मै शब्द कहाँ से लाऊँ। वाह बंधु बहुत खूब।

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  6. सकारात्मक सोंच जरुरी है !

    जवाब देंहटाएं
  7. वाह भूपेंद्र जी, आपने शब्दों को कितना सार्थक संजोया है की वे परस्पर अपने अर्थों की अभिव्यक्ति दे रहे हैं...बेहतरीन ...

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