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एक ग़ज़ल

होश में आगया हूँ इधर/
खुद की करने लगा हूँ कदर //
मिल गयी इतनी ज्यादा ख़ुशी /
डबदबाने लगी है नज़र//
रात तकियों ही तकियों कटी /
बज रहा है सुबह का गज़र //
जिनको पूजा था बुत मान कर /
उनसे ही लग रहा आज डर//
रण में कूदे ही जिनके लिए /
शास्त्र लेकर भगे वे ही घर //
उम्र भर जिनपे चलते रहे/
अजनबी क्यों लगीं रहगुज़र?//

10 टिप्‍पणियां:

  1. उम्र भर जिनपे चलते रहे,
    अजनबी क्यों लगीं रहगुज़र|
    खुबसूरत ग़ज़ल मुबारक हो ....

    जवाब देंहटाएं
  2. डबदबाने! टंकण त्रुटि सुधार दीजिए। हर शेर के दरमियां खाली स्थान छोड़ दीजिए।
    ....बहुत अच्छी गज़ल है।

    जवाब देंहटाएं
  3. खूबसूरत गज़ल ...

    मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  4. भूपेंद्र जी,
    आपकी होश में लाने वाली रचना अच्छी लगी!

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.