एक ग़ज़ल
होश में आगया हूँ इधर/
खुद की करने लगा हूँ कदर //
मिल गयी इतनी ज्यादा ख़ुशी /
डबदबाने लगी है नज़र//
रात तकियों ही तकियों कटी /
बज रहा है सुबह का गज़र //
जिनको पूजा था बुत मान कर /
उनसे ही लग रहा आज डर//
रण में कूदे ही जिनके लिए /
शास्त्र लेकर भगे वे ही घर //
उम्र भर जिनपे चलते रहे/
अजनबी क्यों लगीं रहगुज़र?//
Achchhi gajal...achchha likhate hain...aabhar.....
जवाब देंहटाएंउम्र भर जिनपे चलते रहे,
जवाब देंहटाएंअजनबी क्यों लगीं रहगुज़र|
खुबसूरत ग़ज़ल मुबारक हो ....
Behtreen gazal....
जवाब देंहटाएंडबदबाने! टंकण त्रुटि सुधार दीजिए। हर शेर के दरमियां खाली स्थान छोड़ दीजिए।
जवाब देंहटाएं....बहुत अच्छी गज़ल है।
badhiya hai hunar ...
जवाब देंहटाएंछोटी बहर में अच्छी गजल कही है।
जवाब देंहटाएं---------
हॉट मॉडल केली ब्रुक...
नदी : एक चिंतन यात्रा।
खूबसूरत गज़ल ...
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया
बहुत बढ़िया....
जवाब देंहटाएंभूपेंद्र जी,
जवाब देंहटाएंआपकी होश में लाने वाली रचना अच्छी लगी!
badhiya gajal hai ase hi likhte rhiy
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