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फागुनी गीत

माटी अब अबीर हो गयी ,
जिन्दगी कबीर होगई ,
सपने सब गुलाल हो गए ,
उम्र के बवाल हो गए //

सांसों मे महक गया चन्दन ,
फागुन का शत शत अभिनन्दन ,
अधरों पर धधक उठा टेसू ,
मौसम ने लहराए गेसू //

इंद्र धनुष रंगों का जागा,
नेह का जुड़ा सबसे धागा ,
इठलाती नीम राग गाती ,
मंदिर मे हो रही प्रभाती //

रस कच्ची अम्बिया में जागा ,
अधरों ने अधरों को माँगा ,
चटक गया दर्पण शरमाया ,
यौवन ने ऐसा बहलाया //

हरियाली भाषा सी बोली ,
महक उठी माथे पर रोली ,
गोरी सी एड़ी पर लाली ,
होरी फिर आयी मतवारी //

10 टिप्‍पणियां:

  1. पारम्परिक बिम्बों का नयी शब्द-योजना के साथ प्रयोग अच्छे लगे। भावभिव्यक्ति भी अच्छी है। साधुवाद।

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  2. ..बढ़िया फागुन गीत।
    ..होली फिर आयी मतवाली..भी चलेगा।

    जवाब देंहटाएं
  3. माटी अब अबीर हो गयी ,
    जिन्दगी कबीर होगई ,
    सपने सब गुलाल हो गए ,
    उम्र के बवाल हो गए //
    बहुत सुन्दर फागुनी रंग बिखर रहे हैं हर पँक्ति मे। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. फागुन के रंग में भींगी सरस कविता।

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  5. प्रणाम,
    हमेशा की तरह बहुत सुन्दर और उम्दा लेखन.
    --
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  6. रंगों की धार मानिन्‍द बह निकले दोहे.

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© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.