मैं आदमी हूँ ,मुझे आदमी ही रहने दो/ रोज के रंज ओ ग़म लाचारगी से सहने दो // दोस्त के तेग से बच पाया है कोई सीजर? मुझे अनजान सड़क पर नदी सा बह...Read More
ग़ज़ल
Reviewed by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
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8:49 am
Rating: 5
होश में आगया हूँ इधर/ खुद की करने लगा हूँ कदर // मिल गयी इतनी ज्यादा ख़ुशी / डबदबाने लगी है नज़र// रात तकियों ही तकियों कटी / बज रहा है सुबह...Read More
एक ग़ज़ल
Reviewed by डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह
on
10:34 pm
Rating: 5
मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ,स्नेह और आत्मीयता के चलते सभी को अपने साथ समेट लेने की आकांक्षा ,पूरी हो ,ना हो पर है तो ,जीवन में सब कुछ चाह कर कहाँ मिल पाता है ?बहुत मिला हार्दिक धन्यवाद