ग़ज़ल
दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे ?
ठहरे जल में न फेंको कोई कंकडी ,
हम मुसाफिर है यूंही गुज़र जायेंगे //
मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे ?
ठहरे जल में न फेंको कोई कंकडी ,
हम मुसाफिर है यूंही गुज़र जायेंगे //
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