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नदी

तेजी से आती है ,जाती है नदी ,
मौसम के गीतों को गाती है नदी ,
पथरीले पाटों पर ,उमग रहे घाटों पर ,
प्रथम प्यार की जैसे ,पाती है नदी ,
मटमैले पानी की ,चूनर यह धानी सी ,
तेवर तूफानी ,दिखलाती है नदी ,
गाँव घर बहा ले गई मगर ,
खेतों को जीवन दे जाती है नदी ,
जानती है जाना है ,फ़िर भी एक तराना है ,
अन्तिम प्रहर दीये की बाती है नदी ,

6 टिप्‍पणियां:

  1. पथरीले पाटों पर ,उमग रहे घाटों पर ,
    प्रथम प्यार की जैसे ,पाती है नदी

    सुंदर भाव !

    जवाब देंहटाएं
  2. पथरीले पाटों पर ,उमग रहे घाटों पर ,
    प्रथम प्यार की जैसे ,पाती है नदी ,
    सहमत हूँ मैं भी पारुल जी से ! बहुत अच्छा अभिव्यक्त किया है अपने आपको नदी के माध्यम से !

    जवाब देंहटाएं
  3. नदिया की कल कल
    नदिया की छल छल
    नदी का कहाँ छोर
    पाती है नदी ..............

    खूबसूरत रचना है आपकी

    जवाब देंहटाएं
  4. डॉ. भूपेन्द्र जी,

    नदी के आने-जाने में जीवन को समेटती हुई कविता अपनी सार्थकता पूरी करती है। और शब्दजाल में बिंधे हुये जीवन को नवपरिभाषित करती है।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं

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