नदी
तेजी से आती है ,जाती है नदी ,
मौसम के गीतों को गाती है नदी ,
पथरीले पाटों पर ,उमग रहे घाटों पर ,
प्रथम प्यार की जैसे ,पाती है नदी ,
मटमैले पानी की ,चूनर यह धानी सी ,
तेवर तूफानी ,दिखलाती है नदी ,
गाँव घर बहा ले गई मगर ,
खेतों को जीवन दे जाती है नदी ,
जानती है जाना है ,फ़िर भी एक तराना है ,
अन्तिम प्रहर दीये की बाती है नदी ,
मौसम के गीतों को गाती है नदी ,
पथरीले पाटों पर ,उमग रहे घाटों पर ,
प्रथम प्यार की जैसे ,पाती है नदी ,
मटमैले पानी की ,चूनर यह धानी सी ,
तेवर तूफानी ,दिखलाती है नदी ,
गाँव घर बहा ले गई मगर ,
खेतों को जीवन दे जाती है नदी ,
जानती है जाना है ,फ़िर भी एक तराना है ,
अन्तिम प्रहर दीये की बाती है नदी ,
पथरीले पाटों पर ,उमग रहे घाटों पर ,
जवाब देंहटाएंप्रथम प्यार की जैसे ,पाती है नदी
सुंदर भाव !
sundar bhaav hain ji
जवाब देंहटाएंपथरीले पाटों पर ,उमग रहे घाटों पर ,
जवाब देंहटाएंप्रथम प्यार की जैसे ,पाती है नदी ,
सहमत हूँ मैं भी पारुल जी से ! बहुत अच्छा अभिव्यक्त किया है अपने आपको नदी के माध्यम से !
नदिया की कल कल
जवाब देंहटाएंनदिया की छल छल
नदी का कहाँ छोर
पाती है नदी ..............
खूबसूरत रचना है आपकी
डॉ. भूपेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंनदी के आने-जाने में जीवन को समेटती हुई कविता अपनी सार्थकता पूरी करती है। और शब्दजाल में बिंधे हुये जीवन को नवपरिभाषित करती है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
खूबसूरत रचना है
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