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बिना बातआपके साथ

कैसी है पहेली

बार बार सोचता हूँ कि जिंदगी ऐसी उलझनों , भरी,मुश्किलों भरी क्यों है ?आख़िर क्यों जी जाए ऐसी जिंदगी जहाँ आदमी आदमी को खाने पर तुला है ,कोई जी भी नही पारहा पर
जीने भी नही दे रहा. स्नेह नही ,विश्वास नही ,अपनेपन की डोर डोर तक आस नहीं,तो फिर क्यों ऋषियों,मुनियों ने इसे देव दुर्लभ बताया?
पता नही क्यों मेरा मन आज ये दार्शनिक प्रश्न उठाने लगा है,कविताओं ,ग़ज़लों मे जीवन सत्य ढूंढते,ढूंढते मैं कहाँ आ गया कि गाने की इcछा हुई 'ये कहाँ आ गये हम ?'
शायद आज कुछ निराश हूँ खुद से ,अपने आपसे किस लिए ये खुद को ही पता नही चलता ,अजीब सी बेखुदी है .
यहीं से शुरुआत होती होगी जीवन के दर्शन मे बदलने की शायद,तभी न जीवन दर्शन शब्द उत्पन्न हुआ होगा.
तबीयत है कि ठहरी जारही है ,ज़माना है कि गुज़रा जा रहा है. जिन्हे आप अपना समझते हैं उनसे कहना तो होता है वरना आप उम्र भर मोहब्बत का तावीज़ गले मे डाले ,त्याग की तपस्या निभा रहे हैं और कोई राग के रंग मे डूबा लुत्फ़ अंदोज़ हो रहा है. यही हुआ है बार बार और अभी हज़ारों बार होना बाकी है.यहि वसूल है जिंदगी का दोस्तों ,यही रवायत भी.बड़ीवफ़ा
से निभाई हम ने तुम्हारी थोड़ी सी बेवफ़ाई.
अपनों से अपनी बात न कह पाने की मजबूरी ने हिन्दी की कितनी फिल्मों को मसाला दे कर हिट करवाया है ये सब को पता है ना ........?
मैं जो कहना चाहता हूँ वह
केवल इतना कि अपने प्रियजनों को प्रतीक्षा न कराईए कि आप उनसे स्नेह करते हैं प्यार करते है ,कई बार ऐसा होता है कि आप सोचते है कि कल बोलूँगा यह बात पर उस कल की सुबह ही नही आती काल आजाता है .यह कवि की कल्पना नही जीवन का कटु यथार्थ है.
मैं जीवन बीमा का एजेंट नही जो आप को डरा कर लक्ष्यसाधन करता है,मैं तो एक छोटा मोटा ,जी हाँ ,मोटा कवि हूँ जो आज कल्पना के अभयारंडय से भाग कर यथार्थ के बगीचे मे घुस गया है .
यह मत सोचिए की कोई क्या कहेगा .कहेंगे तो लोग तब भी जब आप नही कहेंगे तो कह डालिए मन की, आपका हलका हो जाएगा ,सामने वाले का भी मुन.यो देर किस बात की ,जाइए ईमेलकीजिए ,चिट्ठी लिखिए ,फोन से या ज़ुबानी कह डालिए ,उसी समय जब इसकी ज़रूरत सबसे ज़्यादा हो.
सच तो यह है कि प्रेम चुप नही रहसकता .इश्क की खामोशी मे भी ज़बान होती है,पर हमारी बात प्रेम पर केंद्रित है इश्क पर नही.
स्नेह की गति तो अद्भुत है कुछ भी ,कभी भी हो सकता है इसलिए इसमे भी पात्रता ,अपात्रता का विचार गौण है,सवाल केवल लगाव का है कोई सीमा ,कोई बंधन नही ,व्योम को भी कोई बाँध पाया है क्या?
प्रेम किसी से हो सकता है कभी भी,अकारण भी ,बिन चाहे भी ,इतना भी के शायर को लिखना पड़े 'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ,यह मुनासिब नही आदमी के लिए /
प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं ,प्यार सब कुछ नही आदमी के लिए'
मैने कई बार सोचा है अकेले मे भी और मित्रों के साथ बैठ कर की यही गीत यदि किसी मरने की कोशिश कर रहे आदमी को सुना दिया जा सके तो शायद एक बार तो शायद इरादे साथ छोड़ ही दें .
आपको क्या नही लगता?
मैं लिखना चाहता था पर आज आप से बातों का मोह मुझे जाने किस मोड़ पर ले आया.
मेरा मन है की कभी कभी ही सही मुझे वैचारिक भटकं न की ओर जाने दें जिस से आप मुझ से जुड़ सकें और मैं आप से.
रात अभी बाकी है पर उसके बाद दिन भी है ,और है उस से जुड़ी हज़ारों ज़िम्मेदारियाँ भी ,तो दोस्तों ,अभी अलविदा ना कहना,
गुडनाइट,शुभ रात्रि. शॅब्बा खैर.
फिर मिलेंगे
सादर,सस्नेह आपका ही
भूपेंद्र रात्रि 12.43

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम किसी से हो सकता है कभी भी,अकारण भी ,बिन चाहे भी ,इतना भी के शायर को लिखना पड़े 'छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए ,यह मुनासिब नही आदमी के लिए /
    प्यार से भी ज़रूरी कई काम हैं ,प्यार सब कुछ नही आदमी के लिए'maine kyee baar apki post padhi..m touched...

    जवाब देंहटाएं
  2. भूपेंद्र जी शॅब्बा खैर....हम तो सुन्दरता ही निहारते रह गए .....!!

    जवाब देंहटाएं
  3. भूपेंद्र जी बहुत सी गहरी बातों को आपने सीधे साधे शब्दों और फ़िल्मी गीतों के माध्यम से कह डाला है...जो कुछ भी कहा है एक दम सत्य है...प्रेम अभिव्यक्त करना ही चाहिए...प्रेम में घुट घुट कर जीने के दिन अब नहीं रहे...आज के युग में देवदास कहलाना हास्यास्पद है...आप इस मुगालते में ना रहें की अगला आपके मन के भावः बिना कहे समझ लेगा...कहिये और जोर देकर कहिये...तभी बात बनेगी...
    जब तलक जीना है "नीरज" मुस्कुराते ही रहो
    क्या ख़बर हिस्से में अब कितनी बची है जिन्दगी
    नीरज

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