ग़ज़ल
टूटे मन से और बहुत भी टूटा हूँ/
औरों को क्या कहूं जो खुद ही झूठा हूँ//
जग में कितने अपनों को दी पीडाएं /
औरों से ठोकर खाई तो रूठा हूँ//
संगम की रेती पर पर चल जीवन काटा /
पर अब लगता है बगलोलों का फूफा हूँ//
इतना हम से कभी पूछ तो लेते तुम/
इतना लूटी दुनिया फिर क्यों भूखा हूँ ?
सबके आगे आगे दौड़ा जीवन भर /
पर अब लगता है सबसे पीछे छूटा हूँ //
टूटे मन से और बहुत भी टूटा हूँ/
औरों को क्या कहूं जो खुद ही झूठा हूँ//
जग में कितने अपनों को दी पीडाएं /
औरों से ठोकर खाई तो रूठा हूँ//
संगम की रेती पर पर चल जीवन काटा /
पर अब लगता है बगलोलों का फूफा हूँ//
इतना हम से कभी पूछ तो लेते तुम/
इतना लूटी दुनिया फिर क्यों भूखा हूँ ?
सबके आगे आगे दौड़ा जीवन भर /
पर अब लगता है सबसे पीछे छूटा हूँ //
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