ग़ज़ल
हवाओं के उलटे ही हम बोलते हैं /
उडने के पहले ही पर तौलते हैं//
रही जंगलों में है रहने की आदत/
मगर मन में इसको ही घर बोलते हैं//
अंधेरों में काफी है नन्हा दिया भी /
वे अंधों को रोशन नज़र बोलते हैं//
दरवाज़े दिल के हैं बन्द इसलिए बस /
मेरे हमसफ़र इस कदर बोलते हैं//
उडने के पहले ही पर तौलते हैं//
रही जंगलों में है रहने की आदत/
मगर मन में इसको ही घर बोलते हैं//
अंधेरों में काफी है नन्हा दिया भी /
वे अंधों को रोशन नज़र बोलते हैं//
दरवाज़े दिल के हैं बन्द इसलिए बस /
मेरे हमसफ़र इस कदर बोलते हैं//
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