ग़ज़ल
टूटता है मन,मनोबल टूटता है/
कोई अपना जब अचानक रूठता है //
दर्द का सागर सुनामी पालता है /
अभिव्यक्ति का ज्वालामुखी जब फूटता है //
दूर तक देखें कहाँ है ताब किसकी/
आजकल रहबर ही घर को लूटता है//
\रेल के पहियों सरीखी ज़िंदगी है /
प्लेट फोर्म पर सिफ़र ही छूटता है//
यह अज़ब अनुभूति है अपनी कथा की/
खुद ही जो खोया उसी को ढूँढता है//
कोई अपना जब अचानक रूठता है //
दर्द का सागर सुनामी पालता है /
अभिव्यक्ति का ज्वालामुखी जब फूटता है //
दूर तक देखें कहाँ है ताब किसकी/
आजकल रहबर ही घर को लूटता है//
\रेल के पहियों सरीखी ज़िंदगी है /
प्लेट फोर्म पर सिफ़र ही छूटता है//
यह अज़ब अनुभूति है अपनी कथा की/
खुद ही जो खोया उसी को ढूँढता है//
aabhaar,bahut dino baad lauta hoon so aapne hausala badhaya ,
जवाब देंहटाएंआप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 1 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
जवाब देंहटाएंआप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
भूलना मत
htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।
सूचनार्थ।
बहुत अच्छा लिखा है. सुन्दर रचना की बधाई.
जवाब देंहटाएंखुद ही जो खोया उसी को ढूँढता है....मन मृगतृष्णा में फंसा है....बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत ही नपे तुले शब्दों में सरलता के साथ गहरी भावनाए व्यक्त करने के लिए साधूवाद ,शुभकामनाये
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