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ग़ज़ल

टूटता है मन,मनोबल टूटता है/
कोई अपना जब अचानक रूठता है //
दर्द का सागर सुनामी पालता है /
अभिव्यक्ति का ज्वालामुखी जब फूटता है //
दूर तक देखें कहाँ है ताब किसकी/
आजकल रहबर ही घर को लूटता है//
\रेल के पहियों सरीखी ज़िंदगी है /
प्लेट फोर्म पर सिफ़र ही छूटता है//
यह अज़ब अनुभूति है अपनी कथा की/
खुद ही जो खोया उसी को ढूँढता है//

5 टिप्‍पणियां:

  1. आप की ये खूबसूरत रचना शुकरवार यानी 1 फरवरी की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
    आप भी इस हलचल में आकर इस की शोभा पढ़ाएं।
    भूलना मत

    htp://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
    इस संदर्भ में आप के सुझावों का स्वागत है।

    सूचनार्थ।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छा लिखा है. सुन्दर रचना की बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  3. खुद ही जो खोया उसी को ढूँढता है....मन मृगतृष्‍णा में फंसा है....बढ़ि‍या

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही नपे तुले शब्दों में सरलता के साथ गहरी भावनाए व्यक्त करने के लिए साधूवाद ,शुभकामनाये

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.