Thursday, April 10 2025

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गीत................
हम समय का इक छोटा सा हिस्सा ,साथ तुम्हारे बीत गये हैं ,रेतीले रेगिस्तानों की , बावदियों सा रीत गये हैं ,सच पूछो तो तुमको हमने ,जीवन की सी परिभाषा दी,कब्रिस्तानों के पेड़ों सी,जी लेने की अभिलाषा दी, हम ने तुमको छुआ कि मेरा ,मन कंचन कंचन हो आया ,पैठ गये हो तुम यूँ हममे जैसे हो दर्पण मे छाया ,रात निखरती जाती जैसे ,तेरा रूप निखरता जाता ,तेरे रूप गंध की चर्चा अब भी कवि लिखता गा पाता//

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© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.