गीत..............................................
एक पल है किजो बिखरता है,
एक पल है कि जो सम्हलता है ,
एक तुम हो जो हमारे मन मे ,
सच मे तुम मे बहुत तरलता है ,
अब भी खुशबू के गीत सी तुम हो ,
उम्र की हार जीत सी तुम हो ,
रोशनी का हो कौंधता सा पल ,
सच मे संकट के मीत सी तुम हो ,
शब्द हो ,गीत हो ,उजाला हो ,
जिसको सूरज ने खुद ही पाला हो
मेरे माथे की लकीरें हो तुम ,
मेरे पावो मे पड़ा छाला हो ,
मेरी अनुभूति की शिला पर भी,
तुमने खुद को अमिट बना डाला,
पीर के द्वार पर लगा डाला ,
अपने संकल्प का सुदृढ़ ताला ,
तुमसे क्या कुछ कहूँ सुमुखि बोलो?
चाह कर भी नही कहूँगा मैं ,
तुमने खुद ही मेरी कथा कह दी ,
पहले जैसा ही चुप रहूँगा मैं ,
aapne bahut achchha likha hai ...mera man to doob sa gaya
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंसुन्दर !जिसे प्रेम किया जा एवह aस्बकुhच हो जाता है,पैर का छाला भी।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
sunder abhiviyakti hai bahut bahut badhai
जवाब देंहटाएंमेरे पावो मे पड़ा छाला हो .. behtareen pankti.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा गीत.. आभार
जवाब देंहटाएंअब भी खुशबू के गीत सी तुम हो ,
जवाब देंहटाएंउम्र की हार जीत सी तुम हो ,
रोशनी का हो कौंधता सा पल ,
सच मे संकट के मीत सी तुम हो ,
बहुत सुंदर.......!!