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गीत
अर्चना के पुष्प का यह थाल,
ज्यों दीप्त दीपित ,
श्रेष्ठ ,उन्नत भाल ,
हर सुबह के साथ नया प्रकाश ,
नावों ने फहरा दिए फ़िर पाल,//
अर्चना ............
समय का संकल्प ले आगे बढो ,
लक्ष्य के दुर्गम शिखर पर जा चढो ,
जीत लो बढ़ कर उदासी के किले ,
दीप्त हो जिससे विजय का भाल //अर्चना ..........
दर्द का हर द्वार सूना हो गया ,
जीत का संकल्प दूना हो गया ,
ज्ञान ने पाया नया उन्मेष ,
फेंकता मन फ़िर नदी में जाल ,//अर्चना ...........
शब्द फ़िर रचने लगे इतिहास ,
आस्थाओं के जगे मधुमास
प्राण की गति थाम ले क्या है कोई ?
मेरी देहरी पर ठिठकता काल //अर्चना ...............
गीत के ऊपर गगन के नाद सा ,
शौर्य के रिग्वेदा के अनुवाद सा ,
कर्ण के अद्भुत पराक्रम दान सा,
आज कवि फ़िर से हुआ वाचाल //अर्चना

4 टिप्‍पणियां:

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.