मैं
इस तरह से जिया, मैं मरा/
जिंदगी में नहीं है त्वरा //
तप रहा और ज्यादा गगन /
निर्जला हो रही है धरा //
रोशनी हारने लग पड़ी /
लग रहा है अँधेरा खरा //
मन मे एक धुंध सी उठ पड़ी /
दिल है खाली और मन है भरा //
फूल खोने लगें हैं महक /
जख्म अब भी बहुत है हरा//
उम्र जैसे हुई हथकड़ी /
मीत ,पूछो तो हालत जरा //
उम्र जैसे हुई हथकड़ी ...
जवाब देंहटाएंइस तरह जिया , मैं मरा
जिंदगी में नहीं है त्वरा ...
इतनी उदासी क्यूँ ...जीवन जीने का नाम है ...
एक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही है ...
तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो ,
तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा ...!
सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएं