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मैं

इस तरह से जिया, मैं मरा/
जिंदगी में  नहीं है त्वरा //
तप रहा और ज्यादा गगन /
निर्जला हो रही है धरा  //
रोशनी हारने लग पड़ी /
लग रहा है अँधेरा खरा //
मन मे एक धुंध सी उठ पड़ी /
दिल है खाली और मन है भरा //
फूल खोने लगें हैं महक /
जख्म अब भी बहुत है हरा//
उम्र जैसे हुई हथकड़ी /
मीत ,पूछो तो हालत जरा //

2 टिप्‍पणियां:

  1. उम्र जैसे हुई हथकड़ी ...
    इस तरह जिया , मैं मरा
    जिंदगी में नहीं है त्वरा ...
    इतनी उदासी क्यूँ ...जीवन जीने का नाम है ...
    एक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही है ...
    तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो ,
    तुमको अपने आप ही सहारा मिल जाएगा ...!

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© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.