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कविता

कुछ बोलो तो .......

कुछ बोलो तो कि क्या भला करते?
जो भी करसकते थे वो किया हमने , 
एक अंधेरे से  बारजे पर चढ़ कर ,
प्यार का दीप धर दिया हमने //


जिंदगी  सिर्फ और सिर्फ हंसी ,
जिसमे है आंसुओं का गीलापन ,
जिसके आंगन मे है जवानी भी ,
जिसके द्वारे पे खेलता बचपन //


थोडा बढ़ता तो ताप होता मैं ,
नीचे गिरता तो श्राप होता मैं ,
चलते चलते नहीं थका अब भी ,
और बढ़ता तो आप होता मैं //


मैंने रिश्तों को किताबों की तरह ,
यक्ष प्रश्नों के जवाबों की तरह ,
सबसे जो भी मिला लिया हमने ,
जीता आया हूं फिरभी नवाबों की तरह //


मुझसे कहते तो और कुछ करता ,
सामने अपने इक आइना रखता ,
जोड़ बाकी नहीं पता मुझको ,
कैसे खुद में खुद का गुणा करता ,,                                    


मेरी बाँहों को थाम तो लेना ,
कभी तन्हाई मे नाम भी लेना ,
मेरे हमदम ,मेरे साथी ,मेरे महबूब मेरे ,
अपने लफ्जों से काम तो लेना //

5 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई !

    सभी मुक्तक उत्तम

    सभी मुक्तक पठनीय

    जवाब देंहटाएं
  2. मेरी बाँहों को थाम तो लेना ,
    कभी तन्हाई मे नाम भी लेना ,
    मेरे हमदम ,मेरे साथी ,मेरे महबूब मेरे ,
    अपने लफ्जों से काम तो लेना ....
    क्या बात है सर...
    मुम्बई कब जा रहे हैं...

    क्या बात है....

    चन्दर मेहेर

    जवाब देंहटाएं
  3. saaree rachnaayain dil ko chho lene walee hain....

    जवाब देंहटाएं

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