ग़ज़ल
इतना मायूस न हो ए मेरे दिले नादाँ ,
इन अंधेरों में उजालों को गुनगुनाया कर ,
मुश्किलें लाख सही ,दर्द सही ,चोट सही ,
टूटते दिल के साथ फिर भी मुस्कुराया कर ,
ये सही है की कोई दोस्त न हमदर्द कोई ,
ग़मों के फैलते दरिया को तैर जाया कर ,
कोई न बाँट सकेगा ये अपनी तन्हाई ,
जज्ब ए दिल को परे रख के मुस्कुराया कर ,
तुम्हारे अश्क किन्ही हथेलियों में जज़्ब होते थे ,
न हों तो तू खुद के पास लौट आया कर ,
लफ्ज़ बेकाम से ,नाकाम से जज़्बात हुए ,
इन गुनाहों को फिरभी आइना दिखाया कर //
मुश्किलें लाख सही ,दर्द सही ,चोट सही ,
जवाब देंहटाएंटूटते दिल के साथ फिर भी मुस्कुराया कर ,
बहुत खूब... सुंदर सकारात्मक पंक्तियाँ
हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
जवाब देंहटाएंफिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी
बहुत सुन्दर रचना दिल को छू गयी।
जवाब देंहटाएंलफ्जों के चौखट में बंधे जज्बात.
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