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आप

आप फिर याद आने लगे हैं/
जख्म फिर मुस्कुराने लगें हैं //
धुप की बढ़ रही है तपिश /
फूल फिर गुनगुनाने लगें हैं //
उम्र ज्यों होगई आइना /
अक्स खुद को डराने लगे हैं//
जान बक्शी की किस से अरज ?
दोस्त छूरे चलाने लगे हैं//
मुद्दतों बाद देखा है घर /
पर नयन डबदबाने लगे हैं //
किस से मन की कहें दास्ताँ ?
दर्द फिरसर उठाने लगे हैं //

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह... बेहद खूबसूरत ग़ज़ल... बहुत दिनों बाद इनती उम्दा ग़ज़ल पढने को मिली...

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  2. वाह बेहद खूबसूरत भाव संयोजन...http://mhare-anubhav.blogspot.com/ समय मिले कभी तो आयेगा मेरी इस पोस्ट पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  3. उत्तर
    1. कुछ यूं कह दिया आपने—यादें भी कभी-कभी,परिछाईं सी चलती हैं साथ मेरे तो मैं भी याद हो जाती हूं.

      हटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.