गीत
मेरी चीख सुनेगा कौन?
मैं तो बादल सा आवारा ,
गाँव शहर की गलियों गलियों ,
फिरता हूँ पागल ,नाकारा ,
मुझको लेकर उम्मीदों के सुंदर स्वप्न बुनेगा कौन?
इस जीवन के चन्दन वन में
,कदम कदम पर सर्प मिले,
अपनों को ही डंसने वाले ,
अपनों के ही दर्प मिले ,
अंधियारों को उजियारों का नेता रोज चुनेगा कौन?
गोरा बदन ,चमकती पायल,
आँखों मे तीखा तीखा पन
,कठिन,कटीली चूनर में भी
दीखता है यह नटखट बचपन ,
उन्मादों की मदिर कौंध में ,मीठे गीत बुनेगा कौन ?
धूप धूप सी रही नहीं है ,
कोहरे का है राज बड़ा
,सत्य गली में झाड़ू देता ,
राजमहल में पाप खड़ा ,
ऐसे में अब पाप पुण्य के नाटक नए सुनेगा कौन?
मेरी चीख सुनेगा कौन?
आज के माहोल पे सटीक टीका है ये रचना ... बहुत खूब ...
जवाब देंहटाएंdhanyavaad bandhu,aapki shubhkamnao ke liye
जवाब देंहटाएंवर्तमान स्थिति का आईना दिखती सार्थक रचना...शुभकामनायें
जवाब देंहटाएं