ग़ज़ल
हसरत ए नाकाम को क्या क्या कहिये /
दर्द की चोट है ये ,इस चोट को कैसे सहिये?//
सारे चेहरों पे पुता है ये उदासी का ज़हर /
उनके चेहरों पे नकाबें हैं ये किस से कहिये ?//
घर में बैठें हैं उजाले भी लूट के डर से /
इतनी दहशत है तो इस मुल्क मे कैसे रहिये ?/
प्यार के सुरमई पत्ते लगे पीले पडने /
दिल की इन धडकनों की धार मे गुमसुम बहिये //
घर मे रहिये या निकल आइये इन सड़कों पे /
मेरी ख्वाहिश है कि इस भीड़ मे तनहा रहिये //
कितनी बातें हैं मगर किस से कहें किस से सुनें ?/
पावों में आदमी के लग गए जैसे पहिये //
दर्द की चोट है ये ,इस चोट को कैसे सहिये?//
सारे चेहरों पे पुता है ये उदासी का ज़हर /
उनके चेहरों पे नकाबें हैं ये किस से कहिये ?//
घर में बैठें हैं उजाले भी लूट के डर से /
इतनी दहशत है तो इस मुल्क मे कैसे रहिये ?/
प्यार के सुरमई पत्ते लगे पीले पडने /
दिल की इन धडकनों की धार मे गुमसुम बहिये //
घर मे रहिये या निकल आइये इन सड़कों पे /
मेरी ख्वाहिश है कि इस भीड़ मे तनहा रहिये //
कितनी बातें हैं मगर किस से कहें किस से सुनें ?/
पावों में आदमी के लग गए जैसे पहिये //
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबस जैसे दिल ने पकड़ कर कलम , लिखना कर दिया हो शुरू
इन बातों को सिर्फ अपनी ही बातें मत कहिये
सारे चेहरों पे पुता है ये उदासी का ज़हर /
जवाब देंहटाएंउनके चेहरों पे नकाबें हैं ये किस से कहिये ?/
--वाह!
कितनी बातें हैं मगर किस से कहें किस से सुनें ?/
पावों में आदमी के लग गए जैसे पहिये //
वाह! वाह! क्या कहने!
बहुत ही बढ़िया शेर कहे हैं !
बहुत अच्छी ग़ज़ल.
बढिया ...
जवाब देंहटाएंघर मे रहिये या निकल आइये इन सड़कों पे /
जवाब देंहटाएंमेरी ख्वाहिश है कि इस भीड़ मे तनहा रहिये //
ये शेर गजल की जान है
बधाइयाँ
कितनी सीधी, सदा, सच्ची बातें बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ......... आप की गजल बेहतरीन है.
जवाब देंहटाएंwow !!!!!!!!
जवाब देंहटाएंbahut khub
shkehar kumawat
घर मे रहिये या निकल आइये इन सड़कों पे /
जवाब देंहटाएंमेरी ख्वाहिश है कि इस भीड़ मे तनहा रहिये //
बहुत सुंदर.
घर में बैठें हैं उजाले भी लूट के डर से /
जवाब देंहटाएंइतनी दहशत है तो इस मुल्क मे कैसे रहिये ?/
तमाम अश आर अर्थ पूर्ण हैं इस ग़ज़ल के ज़नाब .