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ग़ज़ल

हसरत ए नाकाम को क्या क्या कहिये /
दर्द की  चोट है ये ,इस चोट को कैसे सहिये?//
सारे चेहरों पे पुता है ये उदासी का ज़हर /
उनके चेहरों पे नकाबें  हैं ये किस से कहिये ?//
घर में बैठें हैं उजाले भी लूट के डर से /
इतनी दहशत है तो इस मुल्क  मे कैसे रहिये ?/
प्यार के सुरमई पत्ते लगे पीले पडने /
दिल की इन धडकनों की धार  मे गुमसुम  बहिये //
घर मे रहिये या निकल आइये इन सड़कों पे /
मेरी ख्वाहिश है कि इस भीड़ मे तनहा रहिये //
कितनी बातें हैं मगर किस से कहें किस से सुनें ?/
पावों में आदमी के लग गए जैसे पहिये //





8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर
    बस जैसे दिल ने पकड़ कर कलम , लिखना कर दिया हो शुरू
    इन बातों को सिर्फ अपनी ही बातें मत कहिये

    जवाब देंहटाएं
  2. सारे चेहरों पे पुता है ये उदासी का ज़हर /
    उनके चेहरों पे नकाबें हैं ये किस से कहिये ?/
    --वाह!

    कितनी बातें हैं मगर किस से कहें किस से सुनें ?/
    पावों में आदमी के लग गए जैसे पहिये //

    वाह! वाह! क्या कहने!
    बहुत ही बढ़िया शेर कहे हैं !
    बहुत अच्छी ग़ज़ल.

    जवाब देंहटाएं
  3. घर मे रहिये या निकल आइये इन सड़कों पे /
    मेरी ख्वाहिश है कि इस भीड़ मे तनहा रहिये //

    ये शेर गजल की जान है
    बधाइयाँ

    जवाब देंहटाएं
  4. कितनी सीधी, सदा, सच्ची बातें बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ......... आप की गजल बेहतरीन है.

    जवाब देंहटाएं
  5. घर मे रहिये या निकल आइये इन सड़कों पे /
    मेरी ख्वाहिश है कि इस भीड़ मे तनहा रहिये //


    बहुत सुंदर.

    जवाब देंहटाएं
  6. घर में बैठें हैं उजाले भी लूट के डर से /
    इतनी दहशत है तो इस मुल्क मे कैसे रहिये ?/
    तमाम अश आर अर्थ पूर्ण हैं इस ग़ज़ल के ज़नाब .

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.