गीत
मन दुखी है तन सुखी है ,कैसा है यह खेल ?
यह जीवन है या फिर सारे जीवन की है जेल.
रटते रटते ,बारह खाड़ियाँ ,भूल गए सारी बातें ,
भूल गए सब चंदा तारे ,भूल गए गहरी रातें ,
अब तो बस मुर्दा चामों की ढोल बजाना बचा रहा
कब तक जागे चाँद पे बुढ़िया,कितना वो चरखा काते?
इसी लिए तो बैठ न पाया इस जीवन से मेल ,//
तकनीकी बातें जानी पर मन का साथी भूल गए ,
काँटों से नाते दारी की , कुचल मसल सब फूल गए ,
टीस भरी है पोर पोर में ,रग़ रग़ में अंगारे हैं ,
लंगड़े दौड़ें जीत रहे हैं पैरों वाले हारे हैं ,
सच मे मीतों बदल गयी है जीवन की स्केल //
सबके अपने अपने हिस्से ,सबके अपने प्रश्न यहाँ ,
अपनी अपनी द्रोपदियां हैं अपने अपने कृष्ण यहाँ ,
हर कोई अपने ही रण में एकाकी सा जीता है ,
यह जीवन है या फिर सारे जीवन की है जेल.
रटते रटते ,बारह खाड़ियाँ ,भूल गए सारी बातें ,
भूल गए सब चंदा तारे ,भूल गए गहरी रातें ,
अब तो बस मुर्दा चामों की ढोल बजाना बचा रहा
कब तक जागे चाँद पे बुढ़िया,कितना वो चरखा काते?
इसी लिए तो बैठ न पाया इस जीवन से मेल ,//
तकनीकी बातें जानी पर मन का साथी भूल गए ,
काँटों से नाते दारी की , कुचल मसल सब फूल गए ,
टीस भरी है पोर पोर में ,रग़ रग़ में अंगारे हैं ,
लंगड़े दौड़ें जीत रहे हैं पैरों वाले हारे हैं ,
सच मे मीतों बदल गयी है जीवन की स्केल //
सबके अपने अपने हिस्से ,सबके अपने प्रश्न यहाँ ,
अपनी अपनी द्रोपदियां हैं अपने अपने कृष्ण यहाँ ,
हर कोई अपने ही रण में एकाकी सा जीता है ,
सब कुछ सुन्दर सुन्दर दीखता फिर क्यों मन वितृष्ण यहाँ ?//
"अब तो बस मुर्दा चामों की ढोल बजाना बचा रहा
जवाब देंहटाएंकब तक जागे चाँद पे बुढ़िया,कितना वो चरखा काते?"
बहुत सुंदर गीत. अच्छा लगा.
आपके नए पोस्ट का इंतजार रहता है.
bahtrin bahut khub
जवाब देंहटाएंbadhia aap ko is ke liye
shkehar kumawat