तुम्हारा दर्द
मैं तुम्हारे दर्द मे शामिल हुआ हूं /
सच कहूं तो आज कुछ काबिल हुआ हूं //
तमाशे इस कदर देखें हैं अपनी जिंदगी में /
कि अब जाकर कहीं ग़म के मुकाबिल हुआ हूं //
कभी जो फूल खुशियों के खिलें हैं /
कभी मैं दर्द की नदिया का इक साहिल हुआ हूं //
हमेशा सपन बुनता ही रहा हूं /
तभी ले पाक दमन भी बड़ा जाहिल हुआ हूं //
चला हूं तेज़ इतना रोशनी में /
अंधेरोंमें बड़ा ही काहिल हुआ हूं //
सच कहूं तो आज कुछ काबिल हुआ हूं //
तमाशे इस कदर देखें हैं अपनी जिंदगी में /
कि अब जाकर कहीं ग़म के मुकाबिल हुआ हूं //
कभी जो फूल खुशियों के खिलें हैं /
कभी मैं दर्द की नदिया का इक साहिल हुआ हूं //
हमेशा सपन बुनता ही रहा हूं /
तभी ले पाक दमन भी बड़ा जाहिल हुआ हूं //
चला हूं तेज़ इतना रोशनी में /
अंधेरोंमें बड़ा ही काहिल हुआ हूं //
bahut hi khoobsoorat...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंमतला बहुत अच्छा लगा.
-Rajeev Bharol