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गज़ल

ग़ज़ल

यूं ही कहना है अगर आपको ,कहते रहिए ,
भीड़ में एक किसी चेहरे सा रहते रहिए ,
आज सच्चाई का दीया अगर जलाया है ,
दर्द सूली का किसी ईसा सा सहते रहिए ,
धार को चीर के जीने का अलग ही सुख है ,
बेसबब जीना है तो लाश सा बहते रहिए ,
नाज़ हमसे नही उठते ये ज़माने भर के ,
फूल मे खुश्बू से ,बेनाम से रहते रहिए //

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढिया गज़ल है।बधाई स्वीकारें।

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  2. देखिये मेरी तुकबंदी भी -

    यूँ ही कुछ कहना भी है बहुत मुश्किल।
    पीठ हवा की रूख में कर, चलते रहिए।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  3. नाज़ हमसे नही उठते ये ज़माने भर के ,
    फूल मे खुश्बू से ,बेनाम से रहते रहिए //
    बहुत खूब भाई भूपेन्द्र जी !
    प्रत्युत्तर में ...." नाज़ भी आप उठाएंगे भरोसा है हमें , कुछ भी कहने को भले आप यूँ कहते रहिये "
    आमीन !

    जवाब देंहटाएं
  4. हिन्दी में गजल कुछ ही लोगों का शगल होती है।

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.