गीत
कुछ कहो कि तुमने मन जीता,
कुछ सुनो कि सब रीता रीता ,
इतने बादल ,इतनी वर्षा
फिर पानी को क्यों मन तरसा ?
क्यों मैं हारा क्यों जग जीता ?//कुछ कहो.....
ऊँची यह अन गढ़ दीवारें ,
पीठों में चुभती तलवारें ,
जो भी बीता कैसे बीता ?//कुछ कहो..............
हर पल अपने मे खोया सा ,
हर मन है सोया सोया सा ,
ऐसे ही हरी गयीं सीता ,//कुछ कहो............
किसने ऐसे इतिहास लिखे ?
जहाँ छला गया विश्वास दिखे,
खुश हो कि आज का दिन बीता//कुछ कहो......
संबंधों की क्या गहराई?
क्या प्रिय की मादक अंगड़ाई ?
जो नापे बना नही फीता //कुछ कहो.................
धन्यवाद मित्रवर, चाहता तो हूँ कि एक अच्छा संग्रह बनाऊं लेकिन देखो कहाँ तक साथ चलते हैं।
जवाब देंहटाएंkhush ho ki ek din beeta.......subh hoti hai sham hoti hai zindgee yuhi tmaam hoti hai...
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायेँ समाज पर होती हैं ...आप बहुत बेहतरीन लिखते हैं
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
खूबसूरत रचना ।
जवाब देंहटाएंडॉ. साहब,
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लगा "गीत"
किसने ऐसे इतिहास लिखे ?
जहाँ छला गया विश्वास दिखे,
खुश हो कि आज का दिन बीता
इस गीत के लिये बधाईयाँ, और आपके मेरे ब्लॉग "कवितायन" पर आने का शुक्रिया और आपकी टिप्पणी के लिये धन्यवाद.
मैं चाहूंगा कि यह सिलसिला बना रहे है.
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी