फागुनी गीत
माटी अब अबीर हो गयी ,
जिन्दगी कबीर होगई ,
सपने सब गुलाल हो गए ,
उम्र के बवाल हो गए //
सांसों मे महक गया चन्दन ,
फागुन का शत शत अभिनन्दन ,
अधरों पर धधक उठा टेसू ,
मौसम ने लहराए गेसू //
इंद्र धनुष रंगों का जागा,
नेह का जुड़ा सबसे धागा ,
इठलाती नीम राग गाती ,
मंदिर मे हो रही प्रभाती //
रस कच्ची अम्बिया में जागा ,
अधरों ने अधरों को माँगा ,
चटक गया दर्पण शरमाया ,
यौवन ने ऐसा बहलाया //
हरियाली भाषा सी बोली ,
महक उठी माथे पर रोली ,
गोरी सी एड़ी पर लाली ,
होरी फिर आयी मतवारी //
सतरंगी फागुनी गीत ...सुंदर
जवाब देंहटाएंपारम्परिक बिम्बों का नयी शब्द-योजना के साथ प्रयोग अच्छे लगे। भावभिव्यक्ति भी अच्छी है। साधुवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएं..बढ़िया फागुन गीत।
जवाब देंहटाएं..होली फिर आयी मतवाली..भी चलेगा।
माटी अब अबीर हो गयी ,
जवाब देंहटाएंजिन्दगी कबीर होगई ,
सपने सब गुलाल हो गए ,
उम्र के बवाल हो गए //
बहुत सुन्दर फागुनी रंग बिखर रहे हैं हर पँक्ति मे। बधाई।
फागुन के रंग में भींगी सरस कविता।
जवाब देंहटाएंbadhiya majedar geet ...badhaaee
जवाब देंहटाएंBahut Khub
जवाब देंहटाएंप्रणाम,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बहुत सुन्दर और उम्दा लेखन.
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रंगों की धार मानिन्द बह निकले दोहे.
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