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ग़ज़ल

शाम उतरती मौसम नम /
सपनों की आँखों में ग़म //
अक्सर अपने ही छलते /
वरना क्या गैरों में दम //
इन्टरनेट परवान चड़ा /
प्यार बहुत पर परिचय कम //
आए तूफाँ आजाने दो /
चट्टानों के आगे हम //
सच मीरा का इकतारा है /
चका चौंध का झूठ भरम //

11 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी है ....

    यूँ ही निरंतर अच्छा लिखते रहें ....
    आपका और आपके ब्लॉग का स्वागत है

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. beautiful expressions and touching words with fact of life. Liked reading it ya. Regards

    जवाब देंहटाएं
  3. इतनी कसी हुईग़ज़ल में इंटरनेट वाला शेर ढीला लग रहा है ! बढिया रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  4. यह अति सुन्दर लगी

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.