ग़ज़ल
शाम उतरती मौसम नम /
सपनों की आँखों में ग़म //
अक्सर अपने ही छलते /
वरना क्या गैरों में दम //
इन्टरनेट परवान चड़ा /
प्यार बहुत पर परिचय कम //
आए तूफाँ आजाने दो /
चट्टानों के आगे हम //
सच मीरा का इकतारा है /
चका चौंध का झूठ भरम //
सपनों की आँखों में ग़म //
अक्सर अपने ही छलते /
वरना क्या गैरों में दम //
इन्टरनेट परवान चड़ा /
प्यार बहुत पर परिचय कम //
आए तूफाँ आजाने दो /
चट्टानों के आगे हम //
सच मीरा का इकतारा है /
चका चौंध का झूठ भरम //
अच्छा प्रयास है।
जवाब देंहटाएंबढिया रचना है।
बहुत अच्छी ग़ज़ल है। बधाई!
जवाब देंहटाएंlaybaddhata ke saath bahut sundar
जवाब देंहटाएंअच्छी है ....
जवाब देंहटाएंयूँ ही निरंतर अच्छा लिखते रहें ....
आपका और आपके ब्लॉग का स्वागत है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
beautiful expressions and touching words with fact of life. Liked reading it ya. Regards
जवाब देंहटाएंwah ji wah..Dr. sahaib bahut kubh aur sundar shabd.
जवाब देंहटाएंइतनी कसी हुईग़ज़ल में इंटरनेट वाला शेर ढीला लग रहा है ! बढिया रचना है।
जवाब देंहटाएंJanab ye safr jari rakhen.
जवाब देंहटाएंsabse shaandaar
जवाब देंहटाएंsabse shaandaar
जवाब देंहटाएंयह अति सुन्दर लगी
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