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नज़्म 
मेरी किसी ज़मीन पर 
तेरे सूरज की रोशनी ,
अब कभी नही आती ,

मेरे प्यार के बगीचे 
मे तेरी मुहब्बत की 
बुलबुल कभी नही गाती,

क्या करूँ आजकलखुद से
पशेमान बहुत हूँ
दुनियावी रंग देख के 
हैरान बहुत हूँ,

चाहता हूँ कोई ताबीर
नई रच पाऊँ
खुद ही खुद की नज़र 
में जॅंचपाऊँ

पर यह उम्र है जो रेत सी
मुट्ठी से फिसल जाती है 
बस,तेरी याद है 
जो बार-बार आती है,

 

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढीया लिखे हैं और बहुत गहराई वाली बात है।

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  2. कहते हैं कि-

    खुश तुम भी दिखाई देते हो यूँ अफसुरदा हम भी नहीं।
    पर जाननेवाले जानते हैं कि खुश तुम भी नहीं खुश हम भी नहीं।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

    जवाब देंहटाएं
  3. Yun Lag Raha Hai Ki Manpasand blog mil gya. aapki nazm wakyi bahut shaandaar hai...congrats

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूबसूरत नज़्म

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.