नज़्म
मेरी किसी ज़मीन पर
तेरे सूरज की रोशनी ,
अब कभी नही आती ,
मेरे प्यार के बगीचे
मे तेरी मुहब्बत की
बुलबुल कभी नही गाती,
क्या करूँ आजकलखुद से
पशेमान बहुत हूँ
दुनियावी रंग देख के
हैरान बहुत हूँ,
चाहता हूँ कोई ताबीर
नई रच पाऊँ
खुद ही खुद की नज़र
में जॅंचपाऊँ
पर यह उम्र है जो रेत सी
मुट्ठी से फिसल जाती है
बस,तेरी याद है
जो बार-बार आती है,
बहुत भावपूर्ण रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत बढीया लिखे हैं और बहुत गहराई वाली बात है।
जवाब देंहटाएंकहते हैं कि-
जवाब देंहटाएंखुश तुम भी दिखाई देते हो यूँ अफसुरदा हम भी नहीं।
पर जाननेवाले जानते हैं कि खुश तुम भी नहीं खुश हम भी नहीं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
Yun Lag Raha Hai Ki Manpasand blog mil gya. aapki nazm wakyi bahut shaandaar hai...congrats
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर नज़्म.बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत नज़्म
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