तुम
एक सागर है,
और जिसमे तुम ,
उम्र की खामोशियों में ,
होरही हो गुम /
दूर तम भी और ,
गहरा हो रहा है ,
उम्र पर पाबंदियों का और
पहरा हो रहा है ,
मुट्ठी यों से वक़्त की वक्त की यह ,
रेत छनती जा रही है,
शाम पर तन्हाइयों की
एक बदली छा रही है ,
मैं कहाँ हूं तुम कहाँ हो,
बीच बाकी मौन भारी ,
रूप के अंधे कुओं पर ,
जिंदगी का जोश तारी ,
गीत कितने गा चुका हूँ ,
और कितना गा रहा हूँ,
मीत ,तुमको दूर अपने से ,
बहुत क्यों पा रहा हूँ?
शाम का लंबा सफ़र है ,
थक रहे हैं पाव मेरे
याद की दहलीज़ पर ,
ठिठके हुए है स्याह घेरे//
मैं कहाँ हूं तुम कहाँ हो,
जवाब देंहटाएंबीच बाकी मौन भारी ,
रूप के अंधे कुओं पर ,
जिंदगी का जोश तारी ,
beautiful poetry...i like these lines very much.
वाह भूपेन्द्र जी बहुत अच्छा रचा है।
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