गीत
ज़िंदगी का राग हो ,
वक़्त का वहशोर हो तुम,
जो बुन न पाया गीत कोई,
यूँ बहुत मुँह ज़ोर हो तुम//
तुम न जाने क्या रहे हो ,
आज तक अग्यातहै यह,
पर अलग ही हो शुभे तुम ,
राज की ही बात है यह//
गीत की अंतिम कड़ी हो,
ज़िंदगी से भी बड़ी हो ,
आज भी मणि सी धरा के ,
किसी गहवर् मे पड़ी हो //
तुम अनामा छन्द जैसी ,
और मन के द्वंद जैसी ,
पीर के सुर से निकल कर ,
मृत्यु के आनंद जैसी,//
मेरी श्वासों मे तरल सी ,
नेह का स्पर्श तुम हो ,
कौन हो तुम ,क्या पता पर,
जीत का आदर्श तुम हो //
मौन त्यागो ,बोल दो कुछ ,
आज अंतर खोल दो कुछ ,
मैं सदा रन मे रहा हूं
इस लहू का मोल दो कुछ //
सूर्य के रथ सा कभी भी,
बढ़ न जाना छोड़ कर सब
भूल मत जाना प्रणयके
पृष्ठ धूमिल मोड़ कर कुछ//
गीत तो जगता रहेगा
रागिनी चलती रहेगी
पर तुम्हारी व्यथा मन में
चिता सी जलती रहेगी//
मैं तुम्हारे भाल की लिपि
समय सा पढ़ने लगा हूँ
श्रश्टी के अंतिम पलों मे
स्वयं को गढ़ने लगा हूँ// // //,
बहुत सुन्दर रचना है ।बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंआपकी ये रचना बेहद प्रभावशाली और बेहतरीन है
जवाब देंहटाएंमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
राज राज ही रहने दो मत इसे खोल देना।
जवाब देंहटाएंनयनों की भाषा में ही चुप-चाप बोल देना।
बहुत बढ़िया है.
जवाब देंहटाएंरागिनी चलती रहेगी
जवाब देंहटाएंपर तुम्हारी व्यथा मन में
चिता सी जलती रहेगी
मैं तुम्हारे भाल की लिपि
समय सा पढ़ने लगा हूँ
श्रश्टी के अंतिम पलों मे
स्वयं को गढ़ने लगा हूँ....
बहुत सुंदर पंक्तियाँ.....!!
मैं तुम्हारे भाल की लिपि
जवाब देंहटाएंसमय सा पढ़ने लगा हूँ
श्रश्टी के अंतिम पलों मे
स्वयं को गढ़ने लगा हूँ// // //,
बहुत ही शानदार गीत है !!!
तुम अनामा छन्द जैसी ,
जवाब देंहटाएंऔर मन के द्वंद जैसी ,
पीर के सुर से निकल कर ,
मृत्यु के आनंद जैसी,//
मेरी श्वासों मे तरल सी ,
नेह का स्पर्श तुम हो ,
बहुत सुन्दर लिख रहे हो भूपेन्द्र जी ! मन की अतल गहराई का कोई पार नहीं है ! आपका यह रूप बहुत सुखद है !