गीत
प्यास हूँ मै जिंदगी की प्यास हूँ ,
धूप का जलता हुआ अहसास हूँ ,
चाहता था मै गगन चूमूं कभी ,
पुष्प की इक पांख सा झूमूं अभी ,
पर चुभन से गीत मेरे रह गए ,
कूल सा ठहरा रहा मै ,धार से तुम बह गए ,
जान कर सबकुछ बुरा लगता नहीं ,
कोई सपना प्यार का जगता नहीं ,
पास अपने कुछ नहीं जो खो सकूं ,
आदमी था बस वही मैं हो सकूं ,
फ़िर किसी तूफ़ान में बन कर दिया जलता रहूँ ,
प्यार का अहसान ले चलता रहूँ ,
प्यास हूँ मैं जिंदगी की प्यास हूँ ,
पीर का तपता हुआ विश्वास हूँ //
धूप का जलता हुआ अहसास हूँ ,
चाहता था मै गगन चूमूं कभी ,
पुष्प की इक पांख सा झूमूं अभी ,
पर चुभन से गीत मेरे रह गए ,
कूल सा ठहरा रहा मै ,धार से तुम बह गए ,
जान कर सबकुछ बुरा लगता नहीं ,
कोई सपना प्यार का जगता नहीं ,
पास अपने कुछ नहीं जो खो सकूं ,
आदमी था बस वही मैं हो सकूं ,
फ़िर किसी तूफ़ान में बन कर दिया जलता रहूँ ,
प्यार का अहसान ले चलता रहूँ ,
प्यास हूँ मैं जिंदगी की प्यास हूँ ,
पीर का तपता हुआ विश्वास हूँ //
,पास अपने कुछ नहीं जो खो सकूं ,आदमी था बस वही मैं हो सकूं
जवाब देंहटाएंइस से अच्छी बात और क्या हो सकती है अगर इन्सान इन्सान ही रहे बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति आभार्
बहुत ही सुन्दर एहसास लिखा है
जवाब देंहटाएंतपा हुआ विश्वास सुन्दर है
bahut sundar geet.............
जवाब देंहटाएंSundar bhaav pravaah hai. badhai
जवाब देंहटाएंभाई भूपेन्द्र जी ! बहुत ही प्यारा गीत लिखा है ,मन को गहरे तक छू गया ! एक मित्र की बीमारी के कारण बहुत दिनों से ब्लॉग पर आना नहीं हो सका और ' अनुज ' ने भी चुप्पी साध ली थी ! गीत एक ही पंक्ति में क्यों पोस्ट किया है समझ नहीं पा रहा हूँ इसे तो निहायत ही खूबसूरती से व्यवस्थित करके लिखना चाहिये था ! ....बहरहाल इस मोहक गीत के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंपास अपने कुछ नहीं जो खो सकूं .
जवाब देंहटाएंआदमी था बस वही मैं हो सकूं
सच में पीर का तपता विश्वास .
भूपेन्द्र भैय्या बहुत सुन्दर !