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ग़ज़ल

ग़ज़ल
दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे ?
ठहरे जल में न फेंको कोई कंकडी ,
हम मुसाफिर है यूंही गुज़र जायेंगे //

11 टिप्‍पणियां:

  1. ठहरे जल में न फेंको कोई कंकडी
    हम मुसाफिर है यूंही गुज़र जायेंगे
    बहुत खूबसूरत गजल

    जवाब देंहटाएं
  2. किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
    जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
    इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
    मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे

    bahut hee achchhi prastuti.

    जवाब देंहटाएं
  3. किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
    bhut khoob

    जवाब देंहटाएं
  4. भूपेन्द्र जी,

    रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
    यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे

    बहुत ही उम्दा शे’र कहा है, हालांकि पूरी गज़ल अच्छी है पर मुझे इस शे’र ने विशेष रूप से प्रभावित किया।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  5. रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
    यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,

    आप की बात सही है पर ज़रा इन नन्हे चिरागों का हौसला भी तो देखिये

    अंधेरों के मुक़ाबिल होना फ़र्ज़ - ए - चिरागां है ,
    मिटते मिटते भी काम ये अपना कर ही जायेंगे |

    जवाब देंहटाएं
  6. भूपेंद्र जी ,
    अवध - प्रवास करने का आभारी हूँ , धन्यवाद
    कुछ कह भी जाते तो और आनन्द आता

    जवाब देंहटाएं
  7. रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
    यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे
    bahut khoobsurat panktiyan..
    sabhi sher acche lage lekin mujhe sabse adhik pasand aaya aapka yah sher..
    dhanyawaad..

    जवाब देंहटाएं
  8. दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
    मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
    रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
    यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
    अभी-अभी ललित मोहन दादा के ब्लाग से आपके ब्लाग पर ग़ज़लों की तलाश में पहुंचा आनन्द आ गया
    दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
    मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
    रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
    यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
    बहुत अच्छी गज़ल है.
    sanjeev gautam
    sanjivgautam.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  9. किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
    जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
    इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
    मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे ?

    बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर दम दार...वाह...भूपेंद्र जी वाह...
    नीरज

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