ग़ज़ल
ग़ज़ल
दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे ?
ठहरे जल में न फेंको कोई कंकडी ,
हम मुसाफिर है यूंही गुज़र जायेंगे //
दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे ?
ठहरे जल में न फेंको कोई कंकडी ,
हम मुसाफिर है यूंही गुज़र जायेंगे //
ठहरे जल में न फेंको कोई कंकडी
जवाब देंहटाएंहम मुसाफिर है यूंही गुज़र जायेंगे
बहुत खूबसूरत गजल
muddato baad jab hum apne ghar jayenre....sunder bhav.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !!
जवाब देंहटाएंकिसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
जवाब देंहटाएंजब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे
bahut hee achchhi prastuti.
किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,जब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
जवाब देंहटाएंbhut khoob
भूपेन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंरौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे
बहुत ही उम्दा शे’र कहा है, हालांकि पूरी गज़ल अच्छी है पर मुझे इस शे’र ने विशेष रूप से प्रभावित किया।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
जवाब देंहटाएंयह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
आप की बात सही है पर ज़रा इन नन्हे चिरागों का हौसला भी तो देखिये
अंधेरों के मुक़ाबिल होना फ़र्ज़ - ए - चिरागां है ,
मिटते मिटते भी काम ये अपना कर ही जायेंगे |
भूपेंद्र जी ,
जवाब देंहटाएंअवध - प्रवास करने का आभारी हूँ , धन्यवाद
कुछ कह भी जाते तो और आनन्द आता
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
जवाब देंहटाएंयह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे
bahut khoobsurat panktiyan..
sabhi sher acche lage lekin mujhe sabse adhik pasand aaya aapka yah sher..
dhanyawaad..
दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
जवाब देंहटाएंमुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
अभी-अभी ललित मोहन दादा के ब्लाग से आपके ब्लाग पर ग़ज़लों की तलाश में पहुंचा आनन्द आ गया
दर्द के ,प्यास के पर क़तर जायेंगे ,
मुद्दतों बाद हम अपने घर जायेंगे ,
रौशनी बंद गलियों में फिरती रही ,
यह अंधेरे दियों को निगल जायेंगे ,
बहुत अच्छी गज़ल है.
sanjeev gautam
sanjivgautam.blogspot.com
किसने किसको छला कौन कह पायेगा ,
जवाब देंहटाएंजब हमी में विभीषण निकल आएंगे ,
इस जगह की प्रदूषित है आबोहवा ,
मन की वैतरणी कैसे उतर पाएंगे ?
बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर दम दार...वाह...भूपेंद्र जी वाह...
नीरज