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ग़ज़ल

जिन्दगी  आसपास  है /
जाने क्यों फिर उदास है ?//
टूटता है मन यहाँ बहुत /
हर कोई किसी का खास है //
भटक रही है रौशनी यहाँ /
आज तम मे ही उजास है //
गीत गा रही है गन्दगी /
इत्र मे बसी उबास है  //
मीत मेरे कुछ करो जरा /
मुझ मे अब भी शेष प्यास है //

6 टिप्‍पणियां:

  1. भूपेंद्र जी
    सादर वन्दे!
    सुन्दर रचना! और हाँ मैंने आपके ब्लॉग से राष्ट्र ध्वज को अपने ब्लाग पर सजाया है, इसके लिए आभार
    रत्नेश त्रिपाठी

    जवाब देंहटाएं
  2. नमस्ते सर,
    इतने दिनों बाद आपसे यहाँ भेट हुई.
    अच्छा लगा
    मस्त होंगे.

    जवाब देंहटाएं
  3. जिन्दगी आसपास है /
    जाने क्यों फिर उदास है ?//...bhari duniya me jee nahi lagta...jane kis cheez ki kami hai abhi.....

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत अच्छी सार्थक रचना...वाह...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं

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