तेरा नाम
कि तेरा नाम मेरे नाम से जुड़ने लगा है /
जैसे पृष्ठ एक इतिहास का मुड़ने लगा है //
सुबह के स्वप्न सा , तम जरा धुधला पड़ा है /
युवा पक्षी समय का, क्षितिज तक उड़ने लगा है //
अभी आशा तुम्हारी प्रीत के अनुबंध सी है /
कोई क्यों नियम के अधिकार सा कुढने लगा है ?
समस्याओं के जंगल दूर तक फैले हुए हैं /
अहेरी मन भटक कर मार्ग , फिर मुड़ने लगा है //
जैसे पृष्ठ एक इतिहास का मुड़ने लगा है //
सुबह के स्वप्न सा , तम जरा धुधला पड़ा है /
युवा पक्षी समय का, क्षितिज तक उड़ने लगा है //
अभी आशा तुम्हारी प्रीत के अनुबंध सी है /
कोई क्यों नियम के अधिकार सा कुढने लगा है ?
समस्याओं के जंगल दूर तक फैले हुए हैं /
अहेरी मन भटक कर मार्ग , फिर मुड़ने लगा है //
क्या बात है, उम्दा!
जवाब देंहटाएंनाम जुड़ना भी एक कहानी बन जाता है!अच्छे विचारों को कविता के रूप में पिरोया है आपने!!
जवाब देंहटाएंअभी आशा तुम्हारी प्रीत के अनुबंध सी है /
जवाब देंहटाएंकोई क्यों नियम के अधिकार सा कुढने लगा है
आपकी कविता के भाव और शब्द अद्भुत हैं...आपको पढना एक प्रीतिकर अनुभव है...
नीरज