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तेरा नाम

कि तेरा नाम मेरे नाम से जुड़ने लगा है /
जैसे पृष्ठ एक  इतिहास का मुड़ने लगा है //
सुबह के स्वप्न सा , तम जरा धुधला पड़ा है /
युवा पक्षी समय का, क्षितिज तक उड़ने लगा है //
अभी आशा तुम्हारी प्रीत के अनुबंध सी है /
कोई क्यों नियम के अधिकार सा कुढने लगा है ?
समस्याओं के जंगल दूर तक फैले हुए हैं /
अहेरी मन भटक कर मार्ग , फिर मुड़ने लगा है //



3 टिप्‍पणियां:

  1. नाम जुड़ना भी एक कहानी बन जाता है!अच्छे विचारों को कविता के रूप में पिरोया है आपने!!

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  2. अभी आशा तुम्हारी प्रीत के अनुबंध सी है /
    कोई क्यों नियम के अधिकार सा कुढने लगा है

    आपकी कविता के भाव और शब्द अद्भुत हैं...आपको पढना एक प्रीतिकर अनुभव है...
    नीरज

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.