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गज़ल

"दर्द इतना है सह नही सकता /
आपसे कह नही सकता //
अब खुशी कैद है परीशां है /
हवा हूँ तो भी बह नही सकता //
गूंजता हूँ मै बियाबानों में /
साथ गुलशन के रह नही सकता //
मै हूँ शोलों के साथ में शबनम /
लफ्ज़ आवारगी के लुत्फ़ कह नही सकता //

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© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.