गज़ल
"दर्द इतना है सह नही सकता /
आपसे कह नही सकता //
अब खुशी कैद है परीशां है /
हवा हूँ तो भी बह नही सकता //
गूंजता हूँ मै बियाबानों में /
साथ गुलशन के रह नही सकता //
मै हूँ शोलों के साथ में शबनम /
लफ्ज़ आवारगी के लुत्फ़ कह नही सकता //
आपसे कह नही सकता //
अब खुशी कैद है परीशां है /
हवा हूँ तो भी बह नही सकता //
गूंजता हूँ मै बियाबानों में /
साथ गुलशन के रह नही सकता //
मै हूँ शोलों के साथ में शबनम /
लफ्ज़ आवारगी के लुत्फ़ कह नही सकता //
कोई टिप्पणी नहीं: