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ग़ज़ल[अजीब शख्श है ]

' अजीब शख्श है जो मेरे घर में रहता है ,
नदी का तट है वो ,फ़िर भी नदी सा बहता है ,
तेज़ धूप में भी फूलों सा महकता है ,
अपनी बात बस तनहाइयों से कहता है ,
अपने चटके हुए आइने में देखता दुनिया ,
एक ही उम्र में सौ अक्स बन के रहता है ,
जहाँ हरेक के हैं बंद दरो दरवाजे ,
खुली सड़क पे मस्त मौज़ जैसा बहता है ,
के जिनके ताज अजायबघरों में रक्खे हैं ,
उन्हीं बुजुर्गों के टूटे किलों सा ढहता है ,
उसका लिखा हुआ हर लफ्ज़ ग़ज़ल होता है ,
के इस कदर वो अपने joro jabar sahta है





5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारे।

    अपने चटके हुए आइने में देखता दुनिया ,
    एक ही उम्र में सौ अक्स बन के रहता है ,

    जवाब देंहटाएं
  2. bahot badhiya ghazal likh dali aapne bahot khub wah umda lekhan .... dhero badhai apko...

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छा लिखा है सुन्दर अनुभव सही में अजीब है ये शक्स लेकिन मुझसे मिलता जुलता है जो भी है बहुत खूब............
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
    आप
    ๑۩۞۩๑वन्दना
    शब्दों की๑۩۞۩๑
    इस पर क्लिक कीजिए
    आभार...अक्षय-मन

    जवाब देंहटाएं
  5. uska likha hua her lafj gajhal hai....vah....bahut achcha...badhai..

    जवाब देंहटाएं

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