जिंदगी
रुक रही है ,थम रही है ,
रही है पर कम रही है ,
रही रेगिस्तान सी है ,
बूँद जैसी नम रही है ,
ज़िन्दगी ऐसी रही वैसी रही है //
रौशनी है पर जरा कम ,
जोश है पर नहीं है दम ,
कौन जूझे इस अनय से ,
कौन ठोके रोज ही ख़म ?
जिंदगी जैसी मिली वैसी रही है //
टूट कर जुड़ती रही है ,
मोड़ सी मुड़ती रही है ,
दर्द है पर गीत जैसी ,
गगन में उड़ती रही है ,
जिंदगी सागर रही पर नदी के जैसी रही है //
रही है पर कम रही है ,
रही रेगिस्तान सी है ,
बूँद जैसी नम रही है ,
ज़िन्दगी ऐसी रही वैसी रही है //
रौशनी है पर जरा कम ,
जोश है पर नहीं है दम ,
कौन जूझे इस अनय से ,
कौन ठोके रोज ही ख़म ?
जिंदगी जैसी मिली वैसी रही है //
टूट कर जुड़ती रही है ,
मोड़ सी मुड़ती रही है ,
दर्द है पर गीत जैसी ,
गगन में उड़ती रही है ,
जिंदगी सागर रही पर नदी के जैसी रही है //
डॉ. भूपेन्द्र सिँह जी,
जवाब देंहटाएंआशा भरे जीवन को इंगित करती हुई कविता कहीं यथार्थ को समझौते की तरह से लेती हुई लगी।
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है :-
टूट कर जुड़ती रही है ,
मोड़ सी मुड़ती रही है ,
दर्द है पर गीत जैसी ,
गगन में उड़ती रही है ,
जिंदगी सागर रही पर नदी के जैसी रही है ॥
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
जिंदगी सागर पर नदी सी रही है ...अलग सी प्रस्तुति ...!!
जवाब देंहटाएं