Header Ads

Blog Mandli
indiae.in
we are in
linkwithin.com www.hamarivani.com रफ़्तार चिट्ठाजगत
Breaking News
recent

जिंदगी

रुक रही है ,थम रही है ,
रही है पर कम रही है ,
रही रेगिस्तान सी है ,
बूँद जैसी नम रही है ,
ज़िन्दगी ऐसी रही वैसी रही है //
रौशनी है पर जरा कम ,
जोश है पर नहीं है दम ,
कौन जूझे इस अनय से ,
कौन ठोके रोज ही ख़म ?
जिंदगी जैसी मिली वैसी रही है //
टूट कर जुड़ती रही है ,
मोड़ सी मुड़ती रही है ,
दर्द है पर गीत जैसी ,
गगन में उड़ती रही है ,
जिंदगी सागर रही पर नदी के जैसी रही है //

2 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ. भूपेन्द्र सिँह जी,

    आशा भरे जीवन को इंगित करती हुई कविता कहीं यथार्थ को समझौते की तरह से लेती हुई लगी।

    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ है :-

    टूट कर जुड़ती रही है ,
    मोड़ सी मुड़ती रही है ,
    दर्द है पर गीत जैसी ,
    गगन में उड़ती रही है ,
    जिंदगी सागर रही पर नदी के जैसी रही है ॥

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  2. जिंदगी सागर पर नदी सी रही है ...अलग सी प्रस्तुति ...!!

    जवाब देंहटाएं

© डॉ.भूपेन्द्र कुमार सिंह. Blogger द्वारा संचालित.